कबीर के प्रसिद्ध दोहे
1. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
अर्थ: यदि मनुष्य अपने मन से हार मान ले, तो वह हार जाता है, और यदि वह आत्मविश्वास रखे, तो विजय प्राप्त करता है।
2. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
अर्थ: किसी भी कार्य में धैर्य रखना आवश्यक है। जिस प्रकार पेड़ को समय पर फल लगते हैं, वैसे ही हर कार्य का उचित समय होता है।
3. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
अर्थ: जब मैंने दुनिया में बुराई खोजी, तो कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने भीतर झाँका, तो मुझसे बुरा कोई नहीं था।
4. तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय॥
अर्थ: किसी भी छोटे व्यक्ति या चीज़ का अपमान मत करो, क्योंकि जब वही तुम्हारी आँख में गिरता है, तो बहुत दर्द होता है।
5. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय॥
अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे क्यों पैरों तले रौंद रहा है? एक दिन ऐसा आएगा जब तू भी मिट्टी में मिल जाएगा।
कबीर के प्रसिद्ध भजन
1. मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना तीरथ में, ना मूरत में, ना एकांत निवास में॥
ना मन्दिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलास में।
मैं तो तेरे पास में बंदे, मैं तो तेरे पास में॥
2. साधो ये मुरदों का गाँव
साधो ये मुरदों का गाँव।
जागत रहना रे साधो, जागत रहना॥
यहाँ कोई नहीं तेरा, सब झूठा है ठाँव॥
3. घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे
घूँघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे।
न मैं मंदिर, न मैं मस्जिद, न काबे कैलाश में।
मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में॥