धनतेरस, दिवाली महापर्व से दो दिन पहले मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। यह विशेष रूप से भारत में मनाया जाता है और इसके माध्यम से समृद्धि, सुख-शांति, और संपत्ति के आगमन का स्वागत किया जाता है। धनतेरस का पर्व मुख्य रूप से व्यवसायियों, व्यापारियों, और घरों में संपत्ति एवं समृद्धि की कामना के रूप में मनाया जाता है।
धनतेरस का महत्व:
धनतेरस का पर्व “धन” (धन्य) और “तेरस” (तीसरा दिन) से जुड़ा हुआ है। इसे ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से बर्तन, धातु, और आभूषणों की खरीदारी की जाती है, ताकि घर में लक्ष्मी माता का वास हो और समृद्धि बढ़े।
धनतेरस की पूजा विधि:
स्नान और साफ-सफाई: धनतेरस के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और घर की साफ-सफाई करते हैं, ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो।
दीप जलाना: इस दिन दीप जलाना शुभ माना जाता है। घर के हर कोने में दीपक रखें और रात्रि में दीपमालिका सजाएं।
धन की पूजा: इस दिन घर के व्यापारी, खासकर धातु और आभूषण के व्यापार से जुड़े लोग, अपने व्यवसाय का उन्नति के लिए पूजा करते हैं। घर में लक्ष्मी माता और गणेश जी की पूजा की जाती है।
आभूषण और बर्तन खरीदारी: इस दिन लोग बर्तन, धातु, और आभूषण खरीदते हैं, क्योंकि माना जाता है कि इससे घर में लक्ष्मी का वास होता है और समृद्धि आती है।
धनतेरस से जुड़ी कथाएँ:
धनतेरस से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है कि प्राचीन समय में सम्राट हिमालय की बहू, जिसे स्वर्ण नगरी की रानी भी कहा जाता था, को इस दिन मृत्यु के देवता यमराज से छुटकारा मिला था। रानी के पति ने इस दिन विशेष रूप से दीप जलाए थे और भगवान धन्वंतरि की पूजा की थी, जिससे यमराज ने उनकी जान बचाई।
धनतेरस पर विशेष महत्व:
धनतेरस का पर्व ना केवल आर्थिक समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि यह सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली के स्वागत का भी पर्व है। इसे एक नए जीवन की शुरुआत और समृद्धि की ओर पहला कदम माना जाता है।
निष्कर्ष:
धनतेरस भारतीय संस्कृति और परंपरा में गहरे से जुड़ा हुआ त्योहार है, जो समृद्धि, सुख, और सुख-शांति के साथ-साथ सामाजिक रिश्तों को भी मजबूत करता है। इस दिन का उल्लास और पूजा के माध्यम से हम अपने जीवन को सवस्थ, समृद्ध और खुशहाल बना सकते हैं।