गायत्री चालीसा
ॐ भूर्भुवः स्वः, तत्सवितुर्वरेण्यम्। भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्॥
गंगा जमुनाएँ प्रवाहिनीं, रत्नाकर शशाङ्किता। पतित पावन, गायत्री माता, कृपा करुँ मेरी पूजा।
सर्वदा सुखदा, त्रिपुरारी दुर्गा देवी सदा। गायत्री माता की कृपा, हम पे सदैव बनी रहे।
मनोवांछित फल, प्रदान करतीं। त्रिनेत्रा शंकर शिवा, भिक्षु रत्न के तुल्य महिमा।
शान्ति कर्त्री गायत्री की। सच्चिदानंद की रूपा। कालसर्प दोष निवारिणीं, मङ्गलप्रद शरणं दे।
पृथ्वी मण्डल में स्थित। सब सुखदायक नाथ, त्रिकालजयी, जीवनदायिनीं – दीपधारिणी गायत्री।
सर्वशक्तिविहीनों के मध्य, भगवती गायत्री से वशीकृत। शास्त्रविद्या या कोई मूरत, साधक ज्ञानी, समर्पित श्रद्धा हो।
मैं भक्ति में लीन, तातं की सुमिरन से। चित्त शुद्ध करें, शान्ति, सुख हेतु सब परिपूर्ण हों।
आराध्य जगत, एक निर्भर रतन कोई। गायत्री माता, पाप नाशक होय।
ॐ भूर्भुवः स्वः, तत्सवितुर्वरेण्यम्। भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्॥