
भगवान श्रीकृष्ण का गीता उपदेश (श्रीमद्भगवद्गीता का सार)
भूमिका:
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को जो उपदेश दिया, वही श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रसिद्ध है। जब अर्जुन ने अपने कर्तव्य को लेकर मोह और संशय प्रकट किया, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें धर्म, कर्म और योग का उपदेश दिया।
गीता के प्रमुख उपदेश:
1. कर्मयोग – निष्काम कर्म का सिद्धांत (अध्याय 2, 3, 5)
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
(अध्याय 2, श्लोक 47)
अर्थ: मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने पर है, लेकिन फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
निष्काम कर्म:
- हमें फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
- किसी भी कार्य को ईश्वर को अर्पित करके करना चाहिए।
2. आत्मा अमर है (अध्याय 2)
“न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।”
(अध्याय 2, श्लोक 20)
अर्थ: आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
जीवन और मृत्यु का सत्य:
- शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है।
- मृत्यु केवल वस्त्र बदलने जैसी है।
3. भक्तियोग – भक्ति का महत्व (अध्याय 9, 12)
“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।”
(अध्याय 9, श्लोक 34)
अर्थ: अपने मन को मुझमें लगाओ, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो, और मुझे प्रणाम करो।
भक्ति मार्ग:
- प्रेम और श्रद्धा से ईश्वर की भक्ति करने से मोक्ष प्राप्त होता है।
- भगवान केवल सच्चे हृदय से किए गए प्रेम को स्वीकार करते हैं।
4. ज्ञानयोग – सच्चे ज्ञान का महत्व (अध्याय 4)
“ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।”
(अध्याय 4, श्लोक 39)
अर्थ: सच्चा ज्ञान प्राप्त करने से अज्ञान का नाश हो जाता है।
ज्ञान की विशेषता:
- आत्मा का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
- सच्चे गुरु से ज्ञान प्राप्त कर जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
5. समत्व योग – सुख-दुख में समता (अध्याय 2)
“समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।”
(अध्याय 2, श्लोक 15)
अर्थ: जो व्यक्ति सुख-दुख में सम रहता है, वही मोक्ष प्राप्त करने योग्य होता है।
जीवन में समभाव:
- हर परिस्थिति में समान रहना चाहिए।
- सफलता और असफलता को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए।
6. ईश्वर की शरणागति (अध्याय 18)
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”
(अध्याय 18, श्लोक 66)
अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें पापों से मुक्त कर दूँगा।
पूर्ण समर्पण का महत्व:
- भगवान पर पूर्ण विश्वास रखकर उनकी शरण में जाना चाहिए।
- निःस्वार्थ भाव से भगवान की सेवा करनी चाहिए।
7. मोक्ष का मार्ग (अध्याय 8)
“अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।”
(अध्याय 8, श्लोक 5)
अर्थ: जो व्यक्ति मृत्यु के समय मेरा स्मरण करता है, वह मेरे धाम को प्राप्त करता है।
मोक्ष का रहस्य:
- भगवान के नाम का सुमिरन करना चाहिए।
- जीवन में सच्चाई, प्रेम, और भक्ति से रहना चाहिए।
गीता का निष्कर्ष:
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मोह से मुक्त कर कर्म करने के लिए प्रेरित किया। गीता हमें सिखाती है कि निष्काम कर्म, आत्मा का ज्ञान, भक्ति, और समभाव जीवन के प्रमुख सिद्धांत हैं। जो व्यक्ति गीता के इन सिद्धांतों को अपनाता है, वह अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सकता है।
गीता का अंतिम संदेश:
“यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।”
जहाँ भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ अर्जुन जैसे भक्त हैं, वहीं विजय, समृद्धि और धर्म की स्थिरता होती है।
अर्थ: जब हम भगवान श्रीकृष्ण के दिखाए मार्ग पर चलते हैं, तब सफलता निश्चित होती है।