रामायण के अनुसार, जब लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था, तब भगवान श्रीराम ने उन्हें वापस लाने के लिए वानर सेना संग समुद्र पार करने का निर्णय लिया। लेकिन विशाल समुद्र पार करना एक बड़ी चुनौती थी। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान श्रीराम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की।
समुद्र देवता का सुझाव
श्रीराम के तीन दिन और तीन रात की प्रार्थना के बाद, समुद्र देवता प्रकट हुए और उन्होंने सुझाव दिया कि नल और नील नामक वानर, जो विशेष वरदान के कारण पानी पर तैरने वाले पत्थरों को छूते ही उन्हें अस्थिर बना देते थे, उनके नेतृत्व में एक पुल बनाया जाए।
सेतु निर्माण की प्रक्रिया
वानर सेना ने बड़े उत्साह के साथ पुल निर्माण का कार्य आरंभ किया। उन्होंने बड़े-बड़े पत्थर, शिलाएं और वृक्षों को समुद्र में डाला। आश्चर्य की बात यह थी कि जिन पत्थरों पर “श्रीराम” लिखा गया था, वे जल में डूबने के बजाय तैरने लगे। इस प्रकार, पूरी वानर सेना ने अथक परिश्रम करके 100 योजन (लगभग 1200 किलोमीटर) लंबा और 10 योजन (लगभग 120 किलोमीटर) चौड़ा पुल मात्र 5 दिनों में बना डाला।
राम सेतु की धार्मिक मान्यता
यह पुल, जिसे “राम सेतु” या “आदम्स ब्रिज” कहा जाता है, आज भी भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद है। हिंदू धर्म में इसे एक दिव्य चमत्कार माना जाता है। यह पुल केवल एक भौतिक संरचना नहीं, बल्कि श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक भी है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुछ वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, यह पुल प्राकृतिक रूप से बना प्रवाल भित्ति (coral reef) हो सकता है। नासा द्वारा जारी कुछ उपग्रह चित्रों में इस पुल की संरचना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। हालाँकि, रामायण में उल्लिखित कथाएँ इसे भगवान श्रीराम और उनकी सेना द्वारा निर्मित मानती हैं।
निष्कर्ष
राम सेतु न केवल एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक धरोहर है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक भी है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर में विश्वास, परिश्रम, और समर्पण से असंभव कार्य भी संभव बनाए जा सकते हैं।