भगवान श्रीराम के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है रावण वध। रावण, जो लंका का राजा था, ने अपनी शक्ति के घमंड में आकर देवी सीता का हरण किया। इस पर भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए एक बड़ा संघर्ष शुरू किया। उन्होंने वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण किया और रावण से युद्ध किया।
राम और रावण के युद्ध में कई दिन तक घमासान चला, लेकिन अंत में भगवान श्रीराम ने रावण को हराया। रावण का वध हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। रावण के साथ ही उसके भाई कुंभकर्ण और उसके पुत्र मेघनाथ का भी वध हुआ। रावण के वध के साथ ही अधर्म का नाश हुआ और धर्म की विजय हुई।
राम का राज्याभिषेक:
रावण के वध के बाद भगवान श्रीराम ने सीता को मुक्त किया और लंका से लौटने का मार्ग चुना। मार्ग में उन्होंने कई वानर और राक्षसों के साथ बातचीत की और उन्हें आशीर्वाद दिया। वे 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, जहां उनका भव्य स्वागत हुआ।
अयोध्या लौटने पर श्रीराम का राज्याभिषेक होने की तैयारी की गई। यह राज्याभिषेक बहुत धूमधाम से किया गया। पूरे अयोध्या नगर में दीप जलाए गए और खुशियों का माहौल था। सभी जनता ने श्रीराम को भगवान के रूप में पूजा और उनके राज्य में सुख-शांति की कामना की।
राज्याभिषेक के दिन भगवान श्रीराम ने स्वीकृति दी कि वे अयोध्यावासियों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे और उनकी भलाई के लिए शासन करेंगे। इस अवसर पर भगवान राम ने यह संदेश दिया कि धर्म, सत्य, और न्याय की राह पर चलने वाला व्यक्ति ही सच्चा राजा होता है।
श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद अयोध्या में शांति और समृद्धि का साम्राज्य स्थापित हुआ। उनका शासन न्यायपूर्ण और जनकल्याणकारी था। उनके शासनकाल में अयोध्या एक आदर्श राज्य के रूप में समृद्ध और खुशहाल हुआ। श्रीराम के राज्याभिषेक के साथ ही रामराज्य की कल्पना को जीवित किया गया, जो आज भी आदर्श शासन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
निष्कर्ष:
रावण वध और श्रीराम का राज्याभिषेक यह साबित करते हैं कि सत्य और धर्म की विजय होती है। भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में आदर्श व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत किया और उन्होंने सबको यह सिखाया कि जीवन में हर कार्य धर्म के अनुसार करना चाहिए।