मार्गशीर्ष माह में आने वाले महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। मार्गशीर्ष मास को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है, क्योंकि यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी प्रशंसित है।
व्रत की अवधि
यह व्रत मार्गशीर्ष माह के प्रत्येक शुक्रवार को किया जाता है। कुल मिलाकर, इस माह में चार या पाँच शुक्रवार आते हैं, जिनमें यह व्रत किया जाता है।
पूजा विधि
स्नान एवं संकल्प: व्रतधारी को प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
महालक्ष्मी प्रतिमा या चित्र स्थापना: घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर मां लक्ष्मी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
कलश स्थापना: चावल या गेहूं से भरे कलश को लक्ष्मी जी के समीप रखें।
सिंघासन सजाना: देवी को लाल वस्त्र अर्पित करें और उनका श्रृंगार करें।
पूजन सामग्री:
लाल या पीले पुष्प
चावल, हल्दी, कुंकुम
अक्षत, सुपारी, पान
मिठाई, फल, नारियल
दीपक और अगरबत्ती
आरती एवं भोग:
लक्ष्मी माता की कथा सुनें।
घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी की आरती करें।
खीर, लड्डू, या अन्य मीठे पदार्थ का भोग लगाएं।
दक्षिणा दान: पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और वस्त्र अथवा दक्षिणा प्रदान करें।
परिक्रमा एवं विसर्जन: अंत में मां लक्ष्मी की 11 या 21 परिक्रमा करें और व्रत कथा का पाठ करें।
मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी अत्यंत धार्मिक और मां लक्ष्मी की परम भक्त थी। वह मार्गशीर्ष माह के प्रत्येक शुक्रवार को मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करती थी।
एक दिन मां लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और कहा, “मैं तुम्हारे श्रद्धा और विश्वास से प्रसन्न हूँ। तुम्हें धन-धान्य और ऐश्वर्य का वरदान देती हूँ।”
इसके पश्चात, ब्राह्मण के घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं रही और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। यह देखकर गाँव के अन्य लोग भी इस व्रत को करने लगे।
व्रत के लाभ
आर्थिक तंगी दूर होती है।
घर में सुख-समृद्धि आती है।
व्यवसाय और नौकरी में उन्नति होती है।
परिवार में सौहार्द बना रहता है।
समापन
मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की कृपा से भक्तों को धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि का वरदान मिलता है।