शनि चालीसा
|| दोहा ||
जय शनि देव दीननाथ, परिपूरित करो हर काम।
दीनहीन के दुख दूर करो, करो कृपा शरणागताम्॥
जय शनि देव महात्मा, कृपा करो अपनी छाँव।
दुःख निवारणकर्ता शनि, सब पर हो तुम्हारा रौद्र ज्ञान॥
कश्यप मुनि के पुत्र हो, धर्म के रक्षक महान।
सूर्यपुत्र शनि देव हैं, लाज न छोड़ते प्रकट दर्शन॥
सच्चे कर्म की है वाणी, सत्य की राह पर चलें।
नफरत, द्वेष और घृणा छोड़ो, शनि के साथ जीवन सँवारे॥
महाकाल की महिमा की, सुखद संदेश वाहक हो।
व्रत, उपवास करने से होते सुखी, शनि देव की कृपा में साहिल हो॥
चंद्र के पुत्र शनि देव, ज्ञान की खगोल विद्या सिखाए।
ग्रहों की चाल समझें सही, शनि का आशीर्वाद पाए॥
कर्तव्य परायण तुम हो, दिन रात तप करते हो।
सुख की प्राप्ति के लिए शनि, साधना से शांति होती हो॥
शनि ने किया न्याय का काम, हर एक को मिलने चाहिए सबको बराबरी का धर्म।
कोई न बचे अगर करें पाप, शनि देव का व्रत है सच्चा धर्म॥
शनि का ग्यारहवाँ दिन व्रत, सब दुख दूर करने की छांव।
सही मार्ग पर चलो तुम, शनि दे देंगे सबको सुखी जीवन का पर्व॥
ओं शनि देव! जो तुमसे मिले, वह कभी न होगा दीन।
तुम्हारे दर्शन से दुनिया का हर कर्म हो जागृत शुभ दिन॥
|| दोहा ||
जय शनि देव दीननाथ, परिपूरित करो हर काम।
दीनहीन के दुख दूर करो, करो कृपा शरणागताम्॥