Story | महाभारत का चक्रव्यूह और अभिमन्यु कथा

abhimanu

महाभारत का चक्रव्यूह और अभिमन्यु कथा

यह कथा अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के वीरता की है, जो महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह तोड़ने की कला जानते थे, लेकिन बाहर निकलने का मार्ग नहीं जानते थे। उनकी बहादुरी और बलिदान की यह कथा अत्यंत प्रेरणादायक है।

चक्रव्यूह क्या था?

चक्रव्यूह एक विशेष प्रकार की सैन्य रणनीति थी जिसका प्रयोग युद्ध में किया जाता था। इसे महान योद्धा और रणनीतिकार गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों की विजय सुनिश्चित करने के लिए रचा था। यह एक गोलाकार संरचना थी जिसमें प्रवेश करना तो आसान था, लेकिन बाहर निकलना अत्यंत कठिन था।

इस युद्धकला के अनुसार, सैनिकों को एक विशेष क्रम में घेरा बनाकर खड़ा किया जाता था। जैसे-जैसे कोई शत्रु अंदर प्रवेश करता, वह और अंदर खिंचता चला जाता और अंततः उसे बाहर निकलने का मार्ग नहीं मिलता। इस व्यूह को भेदने के लिए एक विशेष रणनीति और पूर्ण ज्ञान आवश्यक था।

अभिमन्यु का चक्रव्यूह में प्रवेश

अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र था। वह महज सोलह वर्ष का युवा योद्धा था, लेकिन अपने पराक्रम और युद्धकला में निपुण था। जब कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान कौरवों ने चक्रव्यूह की रचना की, तब केवल अर्जुन ही उसे भेदने की कला जानते थे। लेकिन उस दिन अर्जुन दूर किसी अन्य मोर्चे पर व्यस्त थे।

अभिमन्यु को अपनी माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह में प्रवेश करने की कला सीखने को मिली थी। किंतु दुर्भाग्यवश, वह केवल प्रवेश करने की कला ही जानता था, बाहर निकलने का ज्ञान अर्जुन उसे नहीं दे सके थे क्योंकि सुभद्रा बीच में ही सो गई थीं।

जब चक्रव्यूह में प्रवेश करने का समय आया, तो अभिमन्यु ने अपनी माता के गर्भ में सुनी हुई शिक्षा का प्रयोग किया और वीरता से चक्रव्यूह में प्रविष्ट हुआ। उसने अपनी अद्भुत शक्ति और पराक्रम का परिचय देते हुए कई कौरव योद्धाओं को परास्त कर दिया।

अभिमन्यु का बलिदान

अभिमन्यु ने व्यूह में घुसकर वीरतापूर्वक युद्ध किया, लेकिन जब वह अंदर चला गया, तो कौरवों के महान योद्धा—द्रोणाचार्य, कर्ण, दुशासन, कृतवर्मा, अश्वत्थामा और अन्य महारथियों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। यह युद्ध धर्म के विरुद्ध था क्योंकि एक अकेले योद्धा पर इतने महारथियों ने मिलकर आक्रमण किया।

अभिमन्यु ने अपनी पूरी शक्ति से युद्ध किया और अनेक योद्धाओं को परास्त किया, लेकिन अंततः वह कौरवों की छलपूर्ण रणनीति का शिकार हो गया। जयद्रथ ने पांडवों को चक्रव्यूह के बाहर रोक लिया था, जिससे कोई भी उसकी सहायता के लिए अंदर नहीं जा सका। अंत में, अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुआ।

अभिमन्यु का बलिदान और परिणाम

अभिमन्यु के बलिदान ने पांडवों को अत्यंत क्रोधित कर दिया। विशेष रूप से अर्जुन ने अपने पुत्र की मृत्यु का प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा की। अगले दिन, अर्जुन ने जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा ली और सूर्यास्त से पहले उसे मारकर अपने पुत्र के बलिदान का बदला लिया।

अभिमन्यु की वीरता और बलिदान महाभारत की सबसे प्रेरणादायक कथाओं में से एक मानी जाती है। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि वीरता, साहस, और निष्ठा सबसे बड़ी ताकत होती है, और धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष करना ही सच्चा कर्तव्य है।

निष्कर्ष

अभिमन्यु की चक्रव्यूह में वीरगति की कथा महाभारत के महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है। यह कथा न केवल एक युवा योद्धा के अद्वितीय साहस को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि अधर्म का अंत निश्चित होता है। अभिमन्यु भले ही अल्पायु में वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन उनकी वीरता और बलिदान आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *